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गाँव तो थूक नहीं सकता था मेरी हथेली पर
सम्मोहित-सा भटकता रहतामौसी कुटकी और चने की भाजी वाली दाल
चंद्रकांत देवताले
चरित्रहीन
किसी की बहन, भौजाई, बहू, मामी, चाची, मौसीउम्र की सँकरी गली के दोराहे पर असभ्य बनने को उत्साहित है।
जुवि शर्मा
पतझड़ के दिनों में माँ
तीसरी साड़ी कोई डेढ़ बरस बाद लाकर दिया थाकानपूर से मामा ने, मंँझली मौसी के बियाह पर