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सिला सुतिय भइ गिरि तरे
सिला सुतिय भइ गिरि तरे, मृतक जिए जग जान।राम अनुग्रह सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान॥
तुलसीदास
बाल, कहा लाली भई
बाल, कहा लाली भई, लोइन-कोंइनु माँह।लाल, तुम्हारे दृगनु की, परी दृगनु में छाँह॥
बिहारी
भाई बंधु कुटुंब सब
भाई बंधु कुटुंब सब, भये इकट्ठे आय।दिना पाँच को खेल है, 'दया' काल ग्रासि जाय॥
दयाबाई
सुन्दर बरिखा अति भई
सुन्दर बरिखा अति भई, सूकि गये नदि नार।मेर बूडि जल मैं रह्यौ, झर लाग्यौ इकसार॥
सुंदरदास
साधु संगति पूरजी भइ
साधु संगति पूरजी भइ, हौं वस्त लइ निरमोल।सहज बल दिया लादि करि, चल्यो लहन पिव मोल॥
रैदास
मेरे रति उलटीं भई
मेरे रति उलटीं भई, के रति आरति नाम।माँगी रति में केलि लहिं, दै-वै रति रुझ धाम॥
दयाराम
सुन्दर बरिषा अति भई
सुन्दर बरिषा अति भई, सूकि गई सब साख।नींव फल्यौ बहु भांति करि, लागै दाड्यौं दाख॥
सुंदरदास
बंस-बंस में प्रगटि भई
बंस-बंस में प्रगटि भई, सब जग करत प्रसंस।बंसी हरि-मुख सों लगी, धन्य वंस कौ बंस॥
नागरीदास
मुकर मुकर सब वस्तु भई
मुकर मुकर सब वस्तु भई, नयन अयन किय लाल।दृग पसारूँ जित-जित अली, तित-तित लखूँ गुपाल॥