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नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
ऐसो मीठो नहिं पियुस
ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥
दयाराम
हम जांणयां था आप थे
हम जांणयां था आप थे, दूरि परै है कोइ।सुन्दर जब सद्गुरु मिल्या, सोहं-सोहं होइ॥
सुंदरदास
उमड़ रहे घन सघन अति
उमड़ रहे घन सघन अति, रही रैन अँधियार।स्याम रंग सारी दुरी, चली पीउ पैं नार॥
दौलत कवि
कै तोहि लागहिं राम प्रिय
कै तोहि लागहिं राम प्रिय, कै तू प्रभु प्रिय होहि।दुइ में रुचै जो सुगम, सो कोने तुलसी तोहि॥
तुलसीदास
मंदिर मसजिद दोए एक हैं
मंदिर मसजिद दोउ एक हैं इन मंह अंतर नाहि।रैदास राम रहमान का, झगड़उ कोउ नाहि॥
रैदास
बुरे भले पर हैं न कछु
बुरे भले पर हैं न कछु, औसर सबै प्रमान।चना लगै प्रिय भूख मैं, नहि पीछे पकवान॥
दीनदयाल गिरि
कछु न प्रीय प्रियप्रान सों
कछु न प्रीय प्रियप्रान सों, सो तुम सों नहि प्रान।तुम प्यारे इक तुमहि से, नां पटतर सम आन॥
दयाराम
देवादास कह सुरत सों
देवादास कह सुरत सों, वै मूरख बड़ा अग्यान।पगथ्या पाड़या हाथ सूँ, करै महल को ध्यान॥
देवादास
का ब्राह्मन का डोम भर
का ब्राह्मन का डोम भर, का जैनी क्रिस्तान।सत्य बात पर जो रहै, सोई जगत महान॥