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अंड न बौड़ रहीम कहि
अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिक्कन पान।हस्ती-ढक्का, कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥
रहीम
हम जांणयां था आप थे
हम जांणयां था आप थे, दूरि परै है कोइ।सुन्दर जब सद्गुरु मिल्या, सोहं-सोहं होइ॥
सुंदरदास
बड़ कौतिक इक ए दिख्यों
बड़ कौतिक इक ए दिख्यों, रति आरति ही रूप।तामें होत प्रतीति सुख, निपुन रंक का भूप॥
दयाराम
मरदाने के कवित ए
मरदाने के कवित ए, कहिहैं क्यों मति-मन्द।बैठि जनाने पढ़त जे, नित नख-सिख के छंद॥
वियोगी हरि
ए तीनों बुध कहत हैं
ए तीनों बुध कहत हैं, श्रद्धा के अनुभाव।श्रद्धा संपति होय घर, तब बस्तु की चाव॥
रसिक अली
ई मन चंचल ई मन चोर
ई मन चंचल ई मन चोर, ई मन शुद्ध ठगहार।मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥