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निर्मल गुर का ज्ञान गहि
निर्मल गुर का ज्ञान गहि, निर्मल भगति विचार।निर्मल पाया प्रेम रस, छूटे सकल बिकार॥
दादू दयाल
निरमल कीबे को मनहिं
निरमल कीबे को मनहिं, करत स्याम रंग ज़ोर।अंजन आँजत दृगन ज्यौं, निरमल ताको कोर॥
बैरीसाल
सुन्दर हरि कै भजन तें
सुन्दर हरि कै भजन तें, निर्मल अंतहकर्ण।सबही कौं अधिकार है, उधरै चारौं वर्ण॥
सुंदरदास
रस ही में औ रसिक में
रस ही में औ रसिक में, आपुहि कियौ उदोत।स्वाति-बूँद में आपु ही, आपुहि चात्रिक होत॥
रसनिधि
रतिरुझ में सुख समुझ मन
रतिरुझ में सुख समुझ मन, पें कहि सके न बाक।कटुताई में मिष्टता, जैसि करेला साक॥
दयाराम
भँवर बिलंबे बाग में
भँवर बिलंबे बाग में, बहु फूलन की बास।ऐसे जीव बिलंबे विषय में, अन्तहु चले निरास॥
कबीर
कब बृंदावन-घरनि में
कब बृंदावन-घरनि में, चरन परैंगे जाय।लोटि धूरि धरि सीस पर, कछु मुखहूँ में पाय॥
नागरीदास
विषई जल में मीन ज्यों,
विषई जल में मीन ज्यों, करत कलोल अजान।नहिं जानत ढिंग काल-बस, रह्यौ ताकि धरि ध्यान॥
ध्रुवदास
सुन्दर नदी प्रवाह में
सुन्दर नदी प्रवाह में, चलत देखिये चंद।तैसैं आतम अचल है चलत कहैं मतिमंद॥
सुंदरदास
पंच तत्व की देह में
पंच तत्व की देह में, त्यौं सुर व्यापक होइ।विस्वरूप में ब्रह्म ज्यौं, व्यापक जानौ सोइ॥
रसनिधि
सोइ नेह नदलाल में
सोइ नेह नदलाल में, प्रकटि न पावें जान।जस असि सूराचित्र कों, एंच्यो होइ न म्यान॥
दयाराम
खोयो मैं घर में अवट
खोयो मैं घर में अवट, कायर जंबुक काम।सीहां केहा देसड़ा, जेथ रहै सो धाम॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
सुबह साँझ के फेर में
सुबह साँझ के फेर में, गुजरी उमर तमाम।द्विविधिा मँह खोये दोऊ, माया मिली न राम॥
शिव सम्पति
जैहै डूबी घरीक में
जैहै डूबी घरीक में, भारत-सुकृत-समाज।सुदृढ़ सौर्य-बल-बीर्य कौ, रह्यौ न आज जहाज॥
वियोगी हरि
मेरा मुझ में कुछ नहीं
मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मेरा॥