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मानुष तैं बड़ पापिया
मानुष तैं बड़ पापिया, अक्षर गुरुहि न मान।बार-बार बन कूकुही, गर्भ धरे और ध्यान॥
कबीर
पाप पुण्य अरु जोति तैं
पाप पुण्य अरु जोति तैं, रवि ससि न्यारे जान।जद्यपि सो सब घटन मैं, प्रतिबिंबित है आन॥
रसनिधि
पीपा पाप न कीजिये
पीपा पाप न कीजिये, तौ पुनि कीया सौ बार।जै कुछ लोभ न लेण का, तौ दीन्ही बार हजारा॥
संत पीपा
ज्या बिन असु न रहे सु बड
ज्या बिन असु न रहे सु बड, और ऊँच तहु हीन।पय पानी तें मधुर पें, व्हा परि जियें न मीन॥
दयाराम
बड़ कौतिक इक ए दिख्यों
बड़ कौतिक इक ए दिख्यों, रति आरति ही रूप।तामें होत प्रतीति सुख, निपुन रंक का भूप॥
दयाराम
पाप पुन्य दोऊ परै
पाप पुन्य दोऊ परै, स्वर्ग नरक तें दूरि।सुन्दर ऐसै संतजन, हरि कैं सदा हजूरि॥
सुंदरदास
पाप पुन्य यह मैं कियौ
पाप पुन्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाऊँ।सुन्दर सब कछु मानि ले, ताही तें मन नाऊँ॥
सुंदरदास
मन बसि करने कहत है
मन बसि करने कहत है, मन कै बसि ह्वै जांहिं।सुन्दर उलटा पेच है, समझि नहीं घट मांहिं॥
सुंदरदास
बेद नृपति की बंदि मैं
बेद नृपति की बंदि मैं, आइ परे सब लोइ।निहगबांन पंडित भये, क्यों करि निकसै कोइ॥
सुंदरदास
सुन्दर सद्गुरु बैद ज्यौं
सुन्दर सद्गुरु बैद ज्यौं, पर उपकार करेइ।जैसौ ही रोगी मिलै, तैसी औषध देइ॥
सुंदरदास
बेद पढ़ई पंडित बन्यो
बेद पढ़ई पंडित बन्यो, गांठ पन्ही तउ चमार।रैदास मानुष इक हइ, नाम धरै हइ चार॥
रैदास
देखो करनी कमल की
देखो करनी कमल की, कीनों जल सों हेत।प्राण तज्यो प्रेम न तज्यो, सूख्यो सरहिं समेत॥