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सिंह मांहिं है सिंह
सिंह मांहिं है सिंह सौ, स्याल मांहिं पुनि स्याल।जैसी घट उनहार है, सुन्दर तैसौ ख्याल॥
सुंदरदास
मार्यौ सिंह महा बली
मार्यौ सिंह महा बली, मार्यौ ब्याघ्र कराल।सुन्दर सबही घेरि करि, मारी मृग की डाल॥
सुंदरदास
सिंह कूप परि आइ कैं
सिंह कूप परि आइ कैं, देखी अपनी छांहिं।सुन्दर जान्यौ दूसरौ, बूड़ि मुवौ ता मांहिं॥
सुंदरदास
पुहमि बियोगिनि मेह की
पुहमि बियोगिनि मेह की, धौरी पीरी जोत।जरि-जरि कारी पीय बिन, मिलैं हरीरी होत॥
जसवंत सिंह
मुग्धा तन त्रिबली बनी
मुग्धा तन त्रिबली बनी, रोमावलि के संग।डोरी गहि बैरी मनौ, अब ही चढ़यो अनंग॥
जसवंत सिंह
रबि दरसै पंकज खुलै
रबि दरसै पंकज खुलै, उड़ै भौंर इकबार।हिय तें मनौ बियोग के, निकसैं बुझे अँगार॥