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वारमुखी में वार अब
वारमुखी में वार अब, युवति-मान में मान।रँग अबीर में बीर त्यौं, कहियत कोस प्रमान॥
वियोगी हरि
नाह-दोष सुनि मान तैं
नाह-दोष सुनि मान तैं, मन को कर्यो कठोर।चंद्रकांत सो होत पै, वा मुखचंद्र निहोर॥
मोहन
नहिँ विवेक जेहि देस में
नहिं विवेक जेहि देस में, तहाँ न जाहु सुजान।दच्छ जहाँ के करत हैं, करिवर खर सम मान॥
दीनदयाल गिरि
मान छट्यौ धन जन छुट्यौ
मान छट्यौ, धन जन छुट्यौ, छुट्यौ राजहू आज।पै मद-प्याली नहिं छुटी, बलि, बिलासि-सिरताज॥
वियोगी हरि
निसि मैं जिमि कमल न लसत
निसि मैं जिमि कमल न लसत, कुमुद न दिवस-उदोत।तिमि तव मुख यह मान तैं, सोभित नेकु न होत॥
मोहन
माया तजे क्या भया
माया तजे क्या भया, जो मान तजा नहिं जाय।जेहि माने मुनिवर ठगे, सो मान सबन को खाय॥
कबीर
राग द्वेष तें रहित हैं
राग द्वेष तें रहित हैं, रहित मान अपमान।सुन्दर ऐसेै संतजन, सिरजे श्री भगवान॥
सुंदरदास
कहा भयौ इक दुर्ग जो
कहा भयौ इक दुर्ग जो, ढायौं रिपु रणधीर।तुम तौ मानिनि-मान-गढ़, नित ढाहत, रति-बीर॥
वियोगी हरि
पितु पति सुत सों पृथक रहि
पितु-पति-सुत सों पृथक रहि, पाव न तिय कल्यान।रतनावलि पतिता बनति, हरति दोउ कुल मान॥
रत्नावली
रतिरुझ में सुख समुझ मन
रतिरुझ में सुख समुझ मन, पें कहि सके न बाक।कटुताई में मिष्टता, जैसि करेला साक॥
दयाराम
खोयो मैं घर में अवट
खोयो मैं घर में अवट, कायर जंबुक काम।सीहां केहा देसड़ा, जेथ रहै सो धाम॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
झीनैं पट मैं झुलमुली
झीनैं पट मैं झुलमुली झलकति ओप अपार।सुरतरु की मनु सिंधु मैं लसति सपल्लव डार॥
बिहारी
मुरझें मन पछताय निति
मुरझें मन पछताय निति, अब न कहें सों खाय।अहो प्रेम बल प्रज्ञहू, भोंरे लो भूल जाय॥