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कर छुटाइ भजि दुरि गई
कर छुटाइ भजि दुरि गई, कनक पूतरिन माहिं।खरे लाल बिलखत खरे, नेकु पिछानत नाहिं॥
बैरीसाल
अम्बणु लाइवि जे गया
अम्बणु लाइवि जे गया पहिअ पराया के वि॥अवस न सुअहिँ सुहच्छिअहि जिवं अम्हइँ तिवं ते वि॥
हेमचंद्र
बिकल होय बाला भजी
बिकल होय बाला भजी, गृह मैं लखि ब्रजराज।डरिकै ज्यों करिनी भजत, बन मैं लखि बनराज॥
मोहन
घी को घट है कामिनी
घी को घट है कामिनी, पुरुष तपत अंगार।रतनावलि घी अगिनि को, उचित न सँग विचार॥
रत्नावली
जहं-जहं भेजै रामजी
जहं-जहं भेजै रामजी, तहं-तहं सुन्दर जाइ।दाणां पांणी देह का, पहली धर्या बनाइ॥
सुंदरदास
जिह्वा भजै हरि नाम नित
जिह्वा भजै हरि नाम नित, हत्थ करहिं नित काम।रैदास भए निहचिंत हम, मम चिंत करेंगे राम॥
रैदास
सद्गुरु दादू राम भजि
सद्गुरु दादू राम भजि, सदा रहै लै लीन।सुन्दर याही समझि कैं, राम भजन हित कीन॥
सुंदरदास
गरव करत है देह को
गरव करत है देह को, बिनसै छिन में मीति।जिहि प्रानी हरि जस कहिओ, नानक तिहि जग जीति॥
गुरु तेग़ बहादुर
प्रेम हरी को रूप है
प्रेम हरी को रूप है, त्यौं हरि प्रेम स्वरूप।एक होइ द्वै यो लसै, ज्यौं सूरज अरु धूप॥
रसखान
जग तजि हरि भजि दया गहि
जग तजि हरि भजि दया गहि, कूर कपट सब छाँड़।हरि सन्मुख गुरु-ज्ञान गहि, मनहीं सूँ रन माँड़॥