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चलि रुकि तिय पिय को लखति
चलि रुकि तिय पिय को लखति, उरझी मनमथ-लाज।करनी मनु लंगर-बँधी, निरखि रही गजराज॥
मोहन
रे मन प्रभुता काल की
रे मन प्रभुता काल की, करहु जतन है ज्यों न।तू फिरि भजन-कुठार सों, काटत ताहीं क्यों न॥
ध्रुवदास
चालिस भरि करि चालि धरि
चालिस भरि करि चालि धरि, तत्तु तौलु करु सेर।ह्वै रहु पूरन एक मन, छाडु करम सब फैर॥
संत शिवनारायण
रीझ लैन पिय पैं चली
रीझ लैन पिय पैं चली, लिय सषिगन कौं गैल।चहूँ ओर मुखचंद की, रही चाँदनी फैल॥
दौलत कवि
देवा रसना गहलैं चालि
देवा रसना गहलैं चालि कै, हृदय सूरति नाम।राह बतावै और कूँ, आगे किया मुकाम॥
देवादास
सुन्दर देह हलै चलै
सुन्दर देह हलै चलै, जब लगि चेतनि लाल।चेतनि कियौ प्रयान जब, रूसि रहै ततकाल॥
सुंदरदास
चली बाल पिय पास अति
चली बाल पिय पास अति, भरी प्रेम रस-भार।कह्यौ अली कित, लाज बस, लगी सँचारन हार॥
दौलत कवि
सुआरथ के सब मीत रे
सुआरथ के सब मीत रे, पग-पग विपद बढ़ाय।पीपा गुरु उपदेश बिनुं, साँच न जान्यो जाय॥