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हम लखि लखहि हमार लखि
हम लखि लखहि हमार लखि, हम हमार के बीच।तुलसी अलखहि का लखहि, राम नाम जप नीच॥
तुलसीदास
दिन में सुभग सरोज है
दिन में सुभग सरोज है, निसि में सुंदर इंदु।द्यौस राति हूँ चारु अति, तेरो बदन गोबिंदु॥
मतिराम
निसि जागति दिन में सुवति
निसि जागति दिन में सुवति, बोई पेड़ बबूर।काटो कदली कंज सो, कह जमाल तकि दूर॥
जमाल
दरी में तो बहू दिन बसे
दरी में तो बहू दिन बसे, अहि उंदर परमान।दरी समारे न मिले, सुनियो संत सुजान॥
गवरी बाई
ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
करि सिंगार दिन में अली
करि सिंगार दिन में अली, चली मिलन सुखकंद।सारी जरी पहिरैं करी, पूरी दुपहरी मंद॥
दौलत कवि
बाग़ों ना जा रे ना जा
बाग़ों ना जा रे ना जा, तेरी काया में गुलज़ार।सहस-कँवल पर बैठ के, तू देखे रूप अपार॥
कबीर
राजा चाहत देन सुख
राजा चाहत देन सुख, पर परजा मतिहीन।पर जामत ही चहत हैं, भूमि करन पग तीन॥
सुधाकर द्विवेदी
मुख तैं बोले मिष्ट जो
मुख तैं बोले मिष्ट जो, उर में राखै घात।मीत नहीं वह दुष्ट है, तुरंत त्यागिये भ्रात॥
बुधजन
बन में गये हरि ना मिले
बन में गये हरि ना मिले, नरत करी नेहाल।बन में तो भूंकते फिरे, मृग, रोझ, सीयाल॥
गवरी बाई
मो सम दीन न दीन हित
मो सम दीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर।अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर॥
तुलसीदास
जा दिन तें मोहि तजि गये
जा दिन तें मोहि तजि गये, ता दिन तें जक नांहि।सुन्दर निस दिन बिरह की, हूक उठत उर मांहि॥
सुंदरदास
जे दुखिया संसार में
जे दुखिया संसार में, खोवो तिनका दुक्ख।दलिद्धर सौंप मलूक को, लोगन दीजै सुक्ख॥
मलूकदास
सोइ नेह नदलाल में
सोइ नेह नदलाल में, प्रकटि न पावें जान।जस असि सूराचित्र कों, एंच्यो होइ न म्यान॥
दयाराम
झां मन बेली ह्वां न श्रम
झां मन बेली ह्वां न श्रम, ब्रिड प्रमाद अघ भीति।धन तन जीवन सहज दे, भै चित प्रीति प्रतीति॥
दयाराम
सुन्दर राजा बिपति सौं
सुन्दर राजा बिपति सौं, घर-घर मांगै भीख।पाय पयादौ उठि चलै, घोरा भरै न बीष॥
सुंदरदास
रतिरुझ में सुख समुझ मन
रतिरुझ में सुख समुझ मन, पें कहि सके न बाक।कटुताई में मिष्टता, जैसि करेला साक॥
दयाराम
जैहै डूबी घरीक में
जैहै डूबी घरीक में, भारत-सुकृत-समाज।सुदृढ़ सौर्य-बल-बीर्य कौ, रह्यौ न आज जहाज॥