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जगत बिझूका देखि करि
जगत बिझूका देखि करि, मन मृग मानै संक।सुन्दर कियौ बिचार जब, मिथ्या पुरुष करंक॥
सुंदरदास
पिय-बिछुरन कौ दुसहु दुखु
पिय−बिछुरन कौ दुसहु दुखु, हुरषु जात प्यौसार।दुरजोधन लौं देखयति तजत प्रान इहि बार॥
बिहारी
विभचारिणि कहै देखि
विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कै बाल।सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मांथै ताल॥
सुंदरदास
विभचारिणि कहै देखि
विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कौ गात।सुन्दर पतिबरता कहै, तेरी छाती लात॥
सुंदरदास
पतिबरता देखै नहीं
पतिबरता देखै नहीं, आंन पुरुष की ओर।सुन्दर वह विभचारिणि, तकत फिरै ज्यौं चोर॥
सुंदरदास
अपनी छाया देषि कै
अपनी छाया देखि कै, कूकर जानै आंन।सुन्दर अति ही जोर करि, भुसि-भुसि मूवौ स्वांन॥
सुंदरदास
जो यह देखै क्रूर ह्वै
जो यह देखै क्रूर ह्वै, तौ वह होत कृतांत।सुंदर जौ यह साधु ह्वै, तौ आगै है सांत॥
सुंदरदास
जब मन देखै जगत कौं
जब मन देखै जगत कौं, जगत रूप यह जाइ।सुन्दर देषै ब्रह्म कौं, तब मन ब्रह्म समाइ॥
सुंदरदास
सद्गुरु देखे नाडि कौं
सद्गुरु देखे नाडि कौं, दूरि करै ब्याधि।सुन्दर ताकौं छोडि दे, जाकै रोग असाधि॥
सुंदरदास
विभचारिणि कहै देखि
विभचारिणि कहै देखि, तूं मेरै पिय कौ द्वार।सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मुख मैं छार॥