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नैंक न जानी परति यों
नैंक न जानी परति यों, पर्यौ बिरह तनु छामु।उठति दियैं लौं नाँदि, हरि, लियै तिहारौ नामु॥
बिहारी
काइँ बहुत्तइँ जंपिअइँ
काइँ बहुत्तइँ जंपिअइँ, जं अप्पणु पडिकूलु।काइँ मि परहु ण तं करहि, एहु जु धम्मह मूलु॥
देवसेन
बाग़ों ना जा रे ना जा
बाग़ों ना जा रे ना जा, तेरी काया में गुलज़ार।सहस-कँवल पर बैठ के, तू देखे रूप अपार॥
कबीर
झझकत हिये गुलाब कै
झझकत हिये गुलाब कै, झँवा झंवैयत पाइ।या बिधि इत सुकुमारता अब न, दई सरसाइ॥
वियोगी हरि
पगीं प्रेम नंदलाल कैं
पगीं प्रेम नंदलाल कैं, हमैं न भावत जोग।मधुप राजपद पाइकै, भीख न माँगत लोग॥
मतिराम
नेहु न नैननु कौं कछू
नेहु न नैननु, कौं कछू उपजी बड़ी बलाइ।नीर-भरे नित-प्रति रहैं, तऊ न प्यास बुझाइ॥
बिहारी
बप्पीहा कइँ बोल्लिएण
बप्पीहा कइँ बोल्लिएण निरिघण वार इ बार।सायरि भरिअइ विमल-जलि लहहि न एक्कइ धार॥११६॥
हेमचंद्र
लखि, लोने लोइननु कैं
लखि, लोने लोइननु कैं, कौइनु, होइ न आजु।कौनु गरीबु निवाजिबौ, तूठ्यौं रतिराजु॥
बिहारी
सुन्दर तृष्णा पकरि कैं
सुन्दर तृष्णा पकरि कैं, करम करावै कोरि।पूरी होइ न पापिनी, भटकावै चहुं वोरि॥
सुंदरदास
सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ
सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ न वि उज्जाण-वणेहिं।देस रवण्णा होंति वढ़ निवसन्तेहिँ सुअणेहिं॥
हेमचंद्र
ना कछु हुवा न होइगा
ना कछु हुवा न होइगा, सद्गुरु सब सिरमौर।सुन्दर देख्या सोधि सब, तोले तुलत न और॥
सुंदरदास
अनामिष नैन कहै न कछु
अनामिष नैन कहै न कछु, समुझै सुनै न कान।निरखैं मोर पखानि कैं, भयो पखान समान॥
मतिराम
पीतपटी लपटाय कैं
पीतपटी लपटाय कैं, लैं लकुटी अभिराम।बसहु मंद मुसिक्याय उर, सगुन-रूप घनस्याम॥
सत्यनारायण कविरत्न
मीन वियोग न सहि सकै
मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥
सूरदास
पतिहि कुदीठि न लखि रतन
पतिहि कुदीठि न लखि रतन, जनि दुरवचन उचारि।पति सों रूठि न रोस करि, तिय निज धरम सम्हारी॥