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नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
ऐसो मीठो नहिं पियुस
ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥
दयाराम
कियौ कोप चित-चोप सों
कियौ कोप चित-चोप सों, आई आनन ओप।भयौ लोप पै मिलत चख, लिखौ हियौ हित छोप॥
दुलारेलाल भार्गव
मंदिर मसजिद दोए एक हैं
मंदिर मसजिद दोउ एक हैं इन मंह अंतर नाहि।रैदास राम रहमान का, झगड़उ कोउ नाहि॥
रैदास
नेहु न नैननु कौं कछू
नेहु न नैननु, कौं कछू उपजी बड़ी बलाइ।नीर-भरे नित-प्रति रहैं, तऊ न प्यास बुझाइ॥
बिहारी
चकवी बिछुटी रैणि की
चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति।जे जन बिछूटे राम सूँ, ते दिन मिले न राति॥
कबीर
क्रूर कुटिल रोगी ऋनी
क्रूर कुटिल रोगी ऋनी, दरिद मंद मति नाह।पाय न मन अनखाय तिय, सती करत निरवाह॥
रत्नावली
सुन्दर सद्गुरु सारिषा कौऊ
सुन्दर सद्गुरु सारिषा, कौऊ नहीं उदार।ज्ञान खजाना खोलिया, सदा अटूट भंडार॥
सुंदरदास
छुट्यो राज, रानी बिकी
छुट्यो राज, रानी बिकी, सहत डोम-गृह दंद।मृत सुत हू लखि प्रियहिं तें, कर माँगत हरिचंद॥
दुलारेलाल भार्गव
वेद मांहि सब भेद हैं
वेद मांहि सब भेद हैं, जाने बिरला कोइ।सुन्दर सो सद्गुरु बिना, निरवारा नहिं होइ॥
सुंदरदास
बनिया मूंघौ ह्वै रह्यौ
बनिया मूंघौ ह्वै रह्यौ, टूंगे फेर्यौ हाथ।सुन्दर ऐसौ भ्रम भयौ, मेरै तौ नहिं माथ॥