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ररा ममा को ध्यान धरि
ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥
देवादास
का ब्राह्मन का डोम भर
का ब्राह्मन का डोम भर, का जैनी क्रिस्तान।सत्य बात पर जो रहै, सोई जगत महान॥
सुधाकर द्विवेदी
देखत-देखत रात-दिन
देखत-देखत रात-दिन, गुनि जन को नहिं मान।रेल छाँड़ि अब चहत हैं, उड़न लोग असमान॥
सुधाकर द्विवेदी
बिरहिनि रोवै रात दिन
बिरहिनि रोवै रात दिन, झूरै मनहीं माहिं।दादू औसर चलि गया, प्रीतम पाये नाहिं॥
दादू दयाल
गई रात, साथी चले
गई रात, साथी चले, भई दीप-दुति मंद।जोबन-मदिरा पी चुक्यौ, अजहुँ चेति मति-मंद॥
दुलारेलाल भार्गव
'दया' कह्यो गुरदेव ने
'दया' कह्यो गुरदेव ने, कूरम को ब्रत लेहि।सब इंद्रिन रोकि करि, सुरत स्वाँस में देहि॥
दयाबाई
दीन बंधु कर घर पली
दीन बंधु कर घर पली, दीनबंधु कर छांह।तौउ भई हों दीन अति, पति त्यागी मो बाहं॥
रत्नावली
चरनदास गुरुदेव ने
चरनदास गुरुदेव ने, मो सूँ कह्यो उचार।'दया' अहर निसि जपत रहु, सोहं सुमिरन सार॥
दयाबाई
सब कौं पालै पोष दै
सब कौं पालै पोष दै, सब को सिरजनहार।परसा सो न बिसारिये, हरि भज बारंबार॥
संत परशुरामदेव
रसना को रस ना मिलै
रसना को रस ना मिलै, अनत अहो रसखान।कान सुनैं नहिं आन गुन, नैन लखैं नहिं आन॥
श्रीधर पाठक
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को, धर्यो न हिय में ध्यान।घर को भयो न घाट को, जिमि धोबी को स्वान॥