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चाह नहीं जिन दरस की
चाह नहीं जिन दरस की, पीर नहीं जिन जीव।पीपा विरह वियौग बिन, कहाँ मिलेंगे पीव॥
संत पीपा
प्रेम नेम जिन ना कियो
प्रेम नेम जिन ना कियो, जीतो नाहीं मैन।अलख पुरुष जिन न लख्यो, छार परो तेहि नैन॥
मलूकदास
जिन नहिं समुझ्यौ प्रेम यह
जिन नहिं समुझ्यौ प्रेम यह, तिनसों कौन अलाप॥दादुर हूँ जल में रहैं, जानै न मीन-मिलाप॥
ध्रुवदास
सुन्दर जिन पतिब्रत कियौ
सुन्दर जिन पतिब्रत कियौ, तिनी कीये सब धर्म।जब हिं करै कछु और कृत, तब ही लागै कर्म॥
सुंदरदास
जिन हम सिरजे'सो कहाँ
जिन हम सिरजे'सो कहाँ, सतगुर देहु दिखाइ।दादू दिल अरवाह का, तहँ मालिक ल्यौ लाइ॥
दादू दयाल
उग्यो बिरहा जिण हिवरे
उग्यो बिरहा जिण हिवरे, रोमां माइन राम।चातक ज्यूं पी नै रटै, पीपा आठहुँ धाम॥
संत पीपा
जिन दिन देखे वे कुसुम
जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार॥
बिहारी
साकत-बामन जिन मिलौ
साकत-बामन जिन मिलौ, वैष्णव मिलि चंडाल।जाहि मिलै सुख पाइये, मनो मिले गोपाल॥
हरीराम व्यास
परसा जिन पैदा कियौ
परसा जिन पैदा कियौ, ताकौं सदा सम्हारि।नित पोषै रच्छा करै, हरि पीतम न बिमारि॥
संत परशुरामदेव
जिन पायनु तें जाह्नवी
जिन पायनु तें जाह्नवी, भई प्रगटि जग-पूत।तिनही तें प्रगटे न ए, तुम्हरे अनुज अछूत॥
वियोगी हरि
जिन जड़ ते चेतन कियो
जिन जड़ ते चेतन कियो, रचि गुण तत्व विधान।चरन चिकुर कर नख दिए, नयन नासिका कान॥
सूरदास
रक्खइ सा विस-हारिणी बे
रक्खइ सा विस-हारिणी बे कर चुम्बिवि जीउ।पडिबिम्बिउ-मुंजालु जलु जेहिं अडोहिउ पीउ॥
हेमचंद्र
जिन सतगुरु के बचन की
जिन सतगुरु के बचन की, करी नहीं परतीत।नहि संगत करी संत की, वह रोवें सिर पीट॥
संत शिवदयाल सिंह
बावन अक्षर बाहिरो
बावन अक्षर बाहिरो, पहुँचे ना मति दास।सतगुरु की किरपा भये, हरि पेखे पूरन पास॥
गवरी बाई
जो जिण सो हउँ, सोजि हउँ
जो जिण सो हउँ, सोजि हउँ, एहउ भाउ णिभंतु।मोक्खहँ कारण जोइया, अण्णु ण तंतु ण मंतु॥