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भरि लोचन बोली प्रिया
भरि लोचन बोली प्रिया, कुंज ओट रिसठानि।पाए जानि तुम्हें अबै, करत प्रीति की हानि॥
कृपाराम
मो मन को तुम मम प्रिये
मो मन को तुम मन प्रिये, मो तन तुम तन चाहि।निरास कीजें ताहि कों, प्रीतम जो प्रिय नाहिं॥
दयाराम
बोय सीसु सींच्यौ सदा
बोय सीसु सींच्यौ सदा, हृदय-रक्त रण-खेत।बीर-कृषक कीरति लही, करी मही जस-सेत॥
वियोगी हरि
संत मुक्त के पौरिया
संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥
सुंदरदास
पर्यौ जौरु बिपरीत रति
पर्यौ जौरु बिपरीत रति, रुपी सुरत-रन-धीर।करति कुलाहलु किंकिनी, गहौ मौनु मंजीर॥
बिहारी
श्रीराधा वृषभानुजा
श्रीराधा वृषभानुजा, कृष्ण-प्रिया हरि-सक्ति।देहु अचल निज पदन की, परमपावनी भक्ति॥
सत्यनारायण कविरत्न
अंग मोतिन के आभरन
अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥
दौलत कवि
जम-करि-मुँह तरहरि परयौ
जम-करि-मुँह तरहरि परयौ, इहिं धरहरि चित लाउ।विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ॥
बिहारी
तजतु अठान न, हठ पर्यौ
तजतु अठान न, हठ पर्यौ, सठमति आठौ जाम।भयौ बामु वा बाम कौं, रहै कामु बेकाम॥
बिहारी
अंग राग दै अलिन मिलि
अंग राग दै अलिन मिलि, किये ललन तन गौर।इक छवि ह्वै प्रीतम प्रिया, ललित लसे इक ठौर॥