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ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
आपै नो आपु मिली रहिआ
आपै नो आपु मिली रहिआ, हउमै दुविधा मारि।नानक नामि रते दुतरु तरे, भउ जलु विषमु संसारु॥
गुरु अमरदास
भै बिचि सभु आकारु है
भै बिचि सभु आकारु है, निरभउ हरिजीउ सोइ।सतिगुरि सेविऐ हरि मनि बसै, तिथै भउ कदे न होइ॥
गुरु अमरदास
भगति बिना क्या होत है
भगति बिना क्या होत है, भरम रहा संसार।रत्ती कंचन पाय नहिं, रावन चलती बार॥
गरीबदास
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
घी को घट है कामिनी
घी को घट है कामिनी, पुरुष तपत अंगार।रतनावलि घी अगिनि को, उचित न सँग विचार॥
रत्नावली
चलिबो है चैते न जग
चलिबो है चैते न जग, भूल्यो देखि समाज।जैसे पथिक सराय परि, रचै स्वपन के राज॥
दीनदयाल गिरि
बोलन है बहु भाँति का
बोलन है बहु भाँति का, तेरे नैनन किछउ न सूझ।कहहिं कबीर बिचारि के, तैं घट-घट बानी बूझ॥
कबीर
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को, धर्यो न हिय में ध्यान।घर को भयो न घाट को, जिमि धोबी को स्वान॥
शिव सम्पति
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥
मलूकदास
सुखरासी सुधि ना रही
सुखरासी सुधि ना रही, लखि के मुख सुख रासि।रस लेते रस बीखयों, पनघट भइ उपहासि॥