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आपै नो आपु मिली रहिआ
आपै नो आपु मिली रहिआ, हउमै दुविधा मारि।नानक नामि रते दुतरु तरे, भउ जलु विषमु संसारु॥
गुरु अमरदास
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
राम भजन का सोच क्या
राम भजन का सोच क्या, करताँ होइ सो होइ।दादू राम सँभालिये, फिरि बूझिये न कोइ॥
दादू दयाल
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को
लह्यो न सुख जग ब्रह्म को, धर्यो न हिय में ध्यान।घर को भयो न घाट को, जिमि धोबी को स्वान॥
शिव सम्पति
रसना को रस ना मिलै
रसना को रस ना मिलै, अनत अहो रसखान।कान सुनैं नहिं आन गुन, नैन लखैं नहिं आन॥
श्रीधर पाठक
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
दुष दै को न रुसाइये
दुष दै को न रुसाइये, कहत जान सुन मित्त।ये ते फूटे ना जुरैं, सीसा मुकता चित्त॥
जान कवि
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥
मलूकदास
भगति बिना क्या होत है
भगति बिना क्या होत है, भरम रहा संसार।रत्ती कंचन पाय नहिं, रावन चलती बार॥
गरीबदास
छुटी न सिसुता की झलक
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग॥
बिहारी
क्या इंद्र क्या राजवी
क्या इंद्र क्या राजवी, क्या सूकर क्या स्वांन।फूली तीनु लोक में, कामी एक समान॥
फूलीबाई
चलिबो है चैते न जग
चलिबो है चैते न जग, भूल्यो देखि समाज।जैसे पथिक सराय परि, रचै स्वपन के राज॥
दीनदयाल गिरि
कहति न देवर की कुबत
कहति न देवर की कुबत, कुल-तिय कलह डराति।पंजर-गत मंजार-ढिग, सुक ज्यौं सूकति जाति॥