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बिनती रति बिपरीत की
बिनती रति बिपरीत की, करी परसि पिय पाइ।हँसि, अनबोलैं हीं दियौ, ऊतरु, दियौ बताइ॥
बिहारी
देह आपकौ जानि करि
देह आपकौ जानि करि, ब्राह्मन क्षत्रिय होइ।बैश्य सूद्र सुन्दर भयौ, अपनी सुधि बुधि खोइ॥
सुंदरदास
बनिता बहु बसु-आस धरि
बनिता बहु बसु-आस धरि, पहुँची आलय जाय।बिस्व-विदिति बसुपति बिना, नलिनी ज्यों मुरझाय॥
मोहन
कतहू भूलो मौंनि धरि
कतहू भूलो मौंनि धरि, कतहू करि बकबाद।सुन्दर या अभिमान तें, उपज्यौ बहुत बिषाद॥