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हम जांणयां था आप थे
हम जांणयां था आप थे, दूरि परै है कोइ।सुन्दर जब सद्गुरु मिल्या, सोहं-सोहं होइ॥
सुंदरदास
कै तोहि लागहिं राम प्रिय
कै तोहि लागहिं राम प्रिय, कै तू प्रभु प्रिय होहि।दुइ में रुचै जो सुगम, सो कोने तुलसी तोहि॥
तुलसीदास
जामै बहु श्रम होय तिहि
जामै बहु श्रम होय तिहि, लोग गनै फल वृंद।जप तीरथ में दुख लहैं नहीं गहैं गोबिन्द॥
दीनदयाल गिरि
तेहि समाज कियो कठिन पन
तेहि समाज कियो कठिन पन, जेहिं तौल्यो कैलास।तुलसी प्रभु महिमा कहौं, सेवक को विस्वास॥
तुलसीदास
बलिहारी तेहि पुरुष की
बलिहारी तेहि पुरुष की, जो परचित परखनहार।साई दीन्हों खाँड़ को, खारी बूझे गँवार॥
कबीर
राम नाम जाकै हृदै
राम नाम जाकै हृदै, ताहि नवैं सब कोइ।ज्यौं राजा की त्रास तें, सुन्दर अति डर होइ॥
सुंदरदास
गल बांही दुहु तहु रटें
गल बांही दुहु तहु रटें, कित प्यारी पिउ कीत।मिलत परे न प्रतीत यह, प्रीति रीति विप्रीत॥
दयाराम
ऊँच नीच पद चहत ताहि
ऊँच नीच पद चहत ताहि, कामिक कर्म करिहै।कबहुँ होइ सुरराज कबहुँ, तिर्यक-तनु धरिहै॥
चतुर्भुजदास
तिहि समान बड़भाग को
तिहि समान बड़भाग को, सो सब के शिरमौर।मन वच, क्रम सर्वद सदा, जिन के जुगलकिशोर॥
हरिव्यास देव
सूतो देवर सेज रण
सूतो देवर सेज रण, प्रसव अठी मो पूत।थे घर बाभी बाँट थण, पालौ उभय प्रसूत॥