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हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
जलहूँ में पुनि आपु ही
जलहूँ में पुनि आपु ही, थलहूँ में पुनि आपु।सब जीवन में आपु है, लसत निरालौ आपु॥
रसनिधि
गरजन में पुनि आपु ही
गरजन में पुनि आपु ही, बरसन में पुनि आपु।सुरझन में पुनि आपु त्यौं, उरझन में पुनि आपु॥
रसनिधि
मन बसि करने कहत है
मन बसि करने कहत है, मन कै बसि ह्वै जांहिं।सुन्दर उलटा पेच है, समझि नहीं घट मांहिं॥
सुंदरदास
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
मृदु हँसि, पुनि-पुनि बोलि प्रिय
मृदु हँसि, पुनि-पुनि बोलि प्रिय, कै रूखी रुख बाम।नेह उपै, पालै, हरै, लै बिधि-हरि-हर-काम॥
दुलारेलाल भार्गव
पुनि सोइ रसिकन संग
पुनि सोइ रसिकन संग, करि लहै यथारथ ज्ञान।नातो सिय रघुनंद सौ, निज स्वरूप पहिचान॥
रसिक अली
सो पुनि त्रिधा बखानिये
सो पुनि त्रिधा बखानिये, साधन भावरु प्रेम।साधन सोई जानिये, यामें बहुविधि नेम॥
रसिक अली
खिझवति हँसति लजाति पुनि
खिझवति हँसति लजाति पुनि, चितवति चमकति हाल।सिसुता जोबन की ललक, भरे बधूतन ख्याल॥
कृपाराम
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥
मलूकदास
बिन पाइन का पंथ है
बिन पाइन का पंथ है, क्यौं करि पहुँचै प्राण।बिकट घाट औघट खरे, माहिं सिखर असमान॥
दादू दयाल
यह करनी का भेद है
यह करनी का भेद है, नाहीं बुद्धि विचार।बुद्धि छोड़ करनी करो, तो पाओ कुछ सार॥
संत शिवदयाल सिंह
पावक पानी पवन पुनि
पावक पानी पवन पुनि, सुन्दर आज्ञा मांहिं।चंद सूर फिरते रहैं, निश दिन आवै जांहिं॥
सुंदरदास
ब्योम वायु पुनि अग्नि जल
ब्योम वायु पुनि अग्नि जल, पुथ्वी कीये मेल।सुंदर इनतैं होइ का, चेतनि खेलै खेल॥
सुंदरदास
तौ पुनि सुजन निमित्त गुन
तौ पुनि सुजन निमित्त गुन, रचिए तन मन फूल।जूँ का भय जिय जानिकै, क्यों डारिए दुकूल॥
चंदबरदाई
राम भजन का सोच क्या
राम भजन का सोच क्या, करताँ होइ सो होइ।दादू राम सँभालिये, फिरि बूझिये न कोइ॥
दादू दयाल
ब्रह्मादिक इंद्रादि पुनि
ब्रह्मादिक इंद्रादि पुनि, सुन्दर बंछहिं देव।मनसा बाचा कर्मना, करि संतनि की सेव॥
सुंदरदास
पुनि अनर्थकर त्याग सब
पुनि अनर्थकर त्याग सब, यह लक्षण उर आनु।प्रथमहि साधन भक्ति के, ता करि भाव बखानु॥