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अज सिव सिद्ध सुरेस मुख
अज सिव सिद्ध सुरेस मुख, जपत रहत निसिजाम।बाधा जन की हरत है, राधा राधा नाम॥
श्री हठी
क्या इंद्र क्या राजवी
क्या इंद्र क्या राजवी, क्या सूकर क्या स्वांन।फूली तीनु लोक में, कामी एक समान॥
फूलीबाई
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
मनुख जनम ले क्या किया
मनुख जनम ले क्या किया, धर्म न अर्थ न काम।सो कुच अज के कंठ मैं, उपजे गए निकाम॥
बुधजन
क्या गंगा क्या गोमती
क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥
फूलीबाई
क्या हिन्दू क्या मुसलमान
क्या हिन्दू क्या मुसलमान, क्या ईसाई जैन।गुरु भक्ती पूरन बिना, कोई न पावे चैन॥
संत शिवदयाल सिंह
भगति बिना क्या होत है
भगति बिना क्या होत है, भरम रहा संसार।रत्ती कंचन पाय नहिं, रावन चलती बार॥
गरीबदास
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
मूरख सों क्या बोलिये
मूरख सों क्या बोलिये, शठ सों काह बसाय।पहन में क्या मारिये, जो चोखा तीर नसाय॥
कबीर
जाका दुरजन क्या करैं
जाका दुरजन क्या करैं, छमा हाथ तरवार।बिना तिना की भूमि पर, आगि बुझै लगि बार॥
बुधजन
अरे पियारे, क्या करौ
अरे पियारे, क्या करौ, जाहि रहो है लाग।क्योंकरि दिल-बारूद में, छिपे इस्क की आग॥
नागरीदास
मानुष बिचारा क्या करे
मानुष बिचारा क्या करे, जाके कहै न खुलै कपाट।स्वनहा चौक बैठाय के, फिर-फिर ऐपन चाट॥
कबीर
माया तजे क्या भया
माया तजे क्या भया, जो मान तजा नहिं जाय।जेहि माने मुनिवर ठगे, सो मान सबन को खाय॥
कबीर
माला मणका क्या गिनूं
माला मणका क्या गिनूं, यह तो सुमरण धाम।पीपा को हरि सुमरै, पीपा सुमरे राम॥
संत पीपा
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥