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झा जाही कों मन मन्यों
झा जाही कों मन मन्यों, सो ताकों सुखदाय।जियें न गिरकिट सरकरा, दघि जखि सरि मरि जाय॥
दयाराम
श्रीस्यामा कों करत हैं
श्रीस्यामा कों करत हैं, रामसहाय प्रनाम।जिन अहिपतिधर कों कियौ, सरस निरंतर धाम॥
रामसहाय दास
जय दुख कों दारुन करैं
जय दुख कोँ दारुन करैं, साधु कुलहि सत संग।पाय जड़ी बल नकुल ज्यों, नासै भीम भुजंग॥
दीनदयाल गिरि
इन दुखिया अँखियानु कों
इन दुखिया अँखियानु कों, सुखु सिरज्यौई नाँहि।देखे बनै न देखतै, अनदेखे अकुलाँहि॥
बिहारी
सब मीठो माशूक कों
सब मीठो माशूक कों, विज्ञानी कहि साच।सकल मनोहर लखि लगें, सस्त्रदस्त ज्यों काच॥
दयाराम
तरे और कों तारही
तरे और कों तारही, लौकालोहू न्याय।नौका ज्यों पाखान ज्यों, बूडे देत बुडाय॥
दीनदयाल गिरि
बिषय-बात मन-पोत कों
बिषय-बात मन-पोत कों, भव-नद देति बहाइ।पकरु नाम पतवार दृढ़, तौ लगिहै तट आइ॥
दुलारेलाल भार्गव
सुरहूँ निरबल कों हनैं
सुरहूँ निरबल कों हनैं, नहिं एकै नर जान।सिंह बाघ वृक छोड़ि कै, लेत छाग बलिदान॥
दीनदयाल गिरि
कीजै सत उपदेश कों
कीजै सत उपदेश कों, होय सुभाव न आन।दारु भार करि तपित जल, सीतल होत निदान॥
दीनदयाल गिरि
राजभ्रष्ट लखि भूप कों
राजभ्रष्ट लखि भूप कों, त्यागि जाहिं सब दास।ज्यों सर सूखो देखि कै, हँस न आवत पास॥
दीनदयाल गिरि
जिहि तन कों सुर आदि सब
जिहि तन कों सुर आदि सब, बाँछत है दिन आहि।सो पाये मतिहीन ह्वै, वृथा गँवावत ताहि॥
ध्रुवदास
लखि दरिद्र कोंदूर तें
लखि दरिद्र कोँ दूर तें, लोग करैं अपमान।जाचक जन ज्यों देखि कै, भूसत हैं बहु स्वान॥
दीनदयाल गिरि
हम अधीन हिन्दून कों
हम अधीन हिन्दून कों, कहौ अब काज?पाप-पंक धोवैं न क्यों, मिलि रोवैं सब आज॥
वियोगी हरि
नहीं पढ़ायो पुत्र कों
नहीं पढ़ायो पुत्र कों, सो पितु बड़ो अभाग।सोहत सुत सो बुध सभा, ज्यों हंसन मैं काग॥
दीनदयाल गिरि
बड़े बड़न के भार कों
बड़े बड़न के भार कों, सहैं न अधम गँवार।साल तरुन मैं गज बँधै, नहि आँकन की डार॥
दीनदयाल गिरि
बड़े बड़न के भार कों
बड़े बड़न के भार कों, सहैं न अधम गँवार।साल तरुन मैं गज बँधै, नहि आँकन की डार॥