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सुन्दर बरछी झलहलैं
सुन्दर बरछी झलहलैं, छूटै बहु दिसि बांण।सूरा पडै पतंग ज्यौं, जहाँ होइ घंमसांण॥
सुंदरदास
छुटी न सिसुता की झलक
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग॥
बिहारी
कैसें छोटे नरनु तैं
कैसें छोटे नरनु तैं, सरत बड़नु के काम।मढयौ दमामौ जातु क्यौं, कहि चूहे कैं चाम॥
बिहारी
कर छुटाइ भजि दुरि गई
कर छुटाइ भजि दुरि गई, कनक पूतरिन माहिं।खरे लाल बिलखत खरे, नेकु पिछानत नाहिं॥
बैरीसाल
छुटै न संपति बिपति हू
छुटै न संपति बिपति हू, ऊँचे जन को संग।बसन फटेहु ना छुटै, ज्यों मजीठ को रंग॥
भूपति
हस्ती छूटा मन फिरै
हस्ती छूटा मन फिरै, क्यूँ ही बंध्या न जाइ।बहुत महावत पचि गये, दादू कछू न बसाइ॥
दादू दयाल
ता दिन हीं तें छुटि है
ता दिन हीं तें छुटि है, खान-पान अरु सैन।छीन देह, जीरन बसन, फिरिहौ हिये न चैन॥
नागरीदास
लाज छुटी कुलकान अरु
लाज छुटी कुलकान अरु, छुट्यौ सखिनि सुख साज।कहा कहिय सखि बस न कछु, निठुर भये बृजराज॥
दौलत कवि
बल होया बंधन छुटे
बल होया बंधन छुटे, सब किछु होत उपाय।सब कुछ तुमरे हाथ में, तुम ही होत सहाय॥
गुरु तेग़ बहादुर
माता पिता लगावते छाती
माता पिता लगावते, छाती सौं सब अंग।सुन्दर निकस्यौ प्रान जब, कोउ न बैठै संग॥
सुंदरदास
विज्जु छटा प्रगटी मनौ
विज्जु छटा प्रगटी मनौ, ठटी रूप ठहराति।नहिं आवति मेरी अँटी, नटी नटी-सी जाति॥
भूपति
चित-चकमक पै चोट दै
चित-चकमक पै चोट दै, चितवन-लोह चलाइ।लगन-लाइ हिय-सूत में, ललना गई लगाइ॥