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नथ दुर मुकुता तिय वदन
नथ दुर मुकुता तिय वदन, परसत परम प्रकास।मानहुँ ससि भ्रम नखत वर, तजि आयो नभ वास॥
भूपति
दूर बसत सत पुरुष गुन
दूर बसत सत पुरुष गुन, धारैं दूत सुभाव।जाय केतकी गंध ज्यों, अलिन घेरि लै आव॥
दीनदयाल गिरि
भोला की डर भागियौ
भोला की डर भागियौ, अंत न पहुड़ै ऐण।बीजी दीठां कुल बहू, नीचा करसी नैण॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
प्रभु तरु तर कपि डार पर
प्रभु तरु तर कपि डार पर, ते किए आपु समान।तुलसी कहूँ न राम से, साहिब-सील निधान॥
तुलसीदास
लखि दरिद्र कोंदूर तें
लखि दरिद्र कोँ दूर तें, लोग करैं अपमान।जाचक जन ज्यों देखि कै, भूसत हैं बहु स्वान॥
दीनदयाल गिरि
नहिं जोजन सत दूर जो
नहिं जोजन सत दूर जो, दुहु मन पूरन प्यार।कासमीर मलयज मिले, करैं विहार लिलार॥