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केहरि को अभिषेक कब
केहरि को अभिषेक कब, कीन्हों विप्रलसाज।निज भुजबल के तेज ते, विपिन भयो मृगराज॥
दीनदयाल गिरि
होत वृथा हरि भजन बिन
होत वृथा हरि भजन बिन, जनम जगत के माहिं।जथा विपिन मैं मालती, फूलि-फूलि भरि जाहिं॥