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सुभट सीस सोनित-सनी
सुभट-सीस-सोनित-सनी, समर-भूमि! धनि-धन्य।नहिं तो सम तारण-तरण, त्रिभुवन तीरथ अन्य॥
वियोगी हरि
नीच बड़न के संग तें
नीच बड़न के संग तें, पदवी लहत अतोल।परे सीप में जलद जल, मुकुता होत अमोल॥
दीनदयाल गिरि
संतत सहज सुभाव सों
संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥
दुलारेलाल भार्गव
संतत सहज सुभाव सों
संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥
दुलारेलाल भार्गव
जड़ के निकट प्रवीन की
जड़ के निकट प्रवीन की, नहीं चलै कछु आह।चतुराई ढिग अंध के, करै चितेरो काह॥
दीनदयाल गिरि
दरश परस में सुख बढ़े
दरश परस में सुख बढ़े, बिनु दरशन दुख भूरि।यह रुचिकै अनुभाव सखि, करै न रघुबर दूरि॥
रसिक अली
अंधे कूप जग में पड़ी
अंधे कूप जग में पड़ी, 'दया' करत बस आय।बूड़त लई निकासि करि, गुरु गुन ज्ञान गहाय॥
दयाबाई
सुमिरण साँचो छोड़ के
सुमिरण साँचो छोड़ के, अंतर मन ही होय।पीपा तन सुध बिसरे, प्रेम छलै न कोय॥
संत पीपा
अड़सठ तीरथ में फिरे
अड़सठ तीरथ में फिरे, कोई बधारे बाल।हिरदा शुद्ध किया बिना, मिले न श्री गोपाल॥
गवरी बाई
बड़े बड़न के भार कों
बड़े बड़न के भार कों, सहैं न अधम गँवार।साल तरुन मैं गज बँधै, नहि आँकन की डार॥
दीनदयाल गिरि
बड़े बड़न के भार कों
बड़े बड़न के भार कों, सहैं न अधम गँवार।साल तरुन मैं गज बँधै, नहि आँकन की डार॥
दीनदयाल गिरि
बाललाल के भाल में
बाललाल के भाल में, सुखमा बसी बिशाल।सुछवि भाल शशि अरघ ह्वै, निरखत होत बिहाल॥
रघुराजसिंह
विस्वासी के ठगन में
विस्वासी के ठगन में, नहीं निपुनता होय।कहा सूरता तासु हनि, रह्यो गोद जो सोय॥