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हर वस्तु भारी होती जा रही है
हर वस्तु भारी होती जा रही है।दूरियाँ बढ़ रही हैं मेरे और स्थानों के बीच।
रुस्तम
आज टूटा मौन, मन कुछ गा रहा है
आज टूटा मौन, मन कुछ गा रहा हैचाव से हर घाव को सहला रहा है
कृष्ण मुरारी पहारिया
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आप न बैठा गोपि ह्वै
आप न बैठा गोपि ह्वै, सुन्दर सब घट माँहि।करता हरता भोगता, लिखै छिपै कछु नाँहि॥
सुंदरदास
अनीता वर्मा के लिए
अपनी हँसी और रुदन को लिखने से ठीक पहलेतुम हमें लिखकर भूल गई थीं अनीता वर्मा
सपना भट्ट
मरती हुई चिट्ठी
छोटी-सी जगह में ज्वार बनकर उगते थे अक्षरउँगलियाँ सपनों के प्रकाश से उज्ज्वलित होती थीं
एन. गोपि
हाकी बाकी रहि गई
हाकी बाकी रहि गई, नां कछु पिवै न खाइ।सुन्दर बिरहनि वह सही, चित्र लिखी रहि जाइ॥
सुंदरदास
लहरों में हलचल होती है
तम-पथ पर भटकाने वालीअभी गा रही थी जो कालिका पड़ी भूमि पर वो सोती है।