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मैथिली लोकगीत : सुरपुर से रिषि नारद फुल एक लायल हे
सुरपुर से रिषि नारद फुल एक लायल हे।आहे दिय गय बाभन हाथ त बेद भनाइय हे।।1।।
बेला फूले आधी रात
तोरा केउ पारबि ने गो फुल फोटाते॥ये पारे से आपनि पारे, पारे से फुल फोटाते।
देवेंद्र सत्यार्थी
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ऊब के नीले पहाड़
कि क्या कहोगे तुम इस बात परऔर केसे पटकूँगी मैं बर्तन जो तुम्हारा बीपी बढ़ा देगा
लीना मल्होत्रा राव
गेहूँ बनाम गुलाब
रामवृक्ष बेनीपुरी
किसन कइ खोज
भरि आईं अँखिया मुदित मन गोपिन की,फुल उठी छतियाँ खुसी से ग्वाल बाल की।
आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
सुन-सुन सुंदर कन्हाई
सरिस-कुसुम सम तनु। थोरि सहब फुल-धनु॥विद्यापति कवि गाब। दूतिक मिनति तुअ पाब॥
विद्यापति
जय जय भैरव असुर-भयाउनि
सामर बरन, नयन अनुरंजित, जलद-जोग फुल कोका।कट-कट बिकट ओठ-पुट पाँड़रि लिधुर-फेन उठ फोका॥
विद्यापति
भानजी के टीथ
हिंदी का ख़ाली पेट लेकर घूमने के बादमैं अँग्रेज़ी के ‘फुल स्टमक’ का हामी हो गया हूँ
अंजुम शर्मा
षड्ऋतु वर्णन (शरद)
सोरह करा सिंगार बनावा। नखतन्ह भरे सुरुज ससि पावा॥भा निरमर सब धरनि अकासू। सेज सँवारि कीन्ह फुल डासू॥
मलिक मोहम्मद जायसी
रानी केतकी की कहानी
आस के जो फुल कुम्हलाए हुए थे, फिर खिले॥चैन होता हीन न था जिस एक को उस एक बिन