शिवमूर्ति : अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
shiwmurti ha ajib shakhs hai pani ke ghar mein rahta hai
दिनेश कुशवाह
Dinesh Kushwah
शिवमूर्ति : अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
shiwmurti ha ajib shakhs hai pani ke ghar mein rahta hai
Dinesh Kushwah
दिनेश कुशवाह
और अधिकदिनेश कुशवाह
मनुष्य जाति के उड़ने का सपना पहली बार साकार करने वाले हवाई जहाज़ के आविष्कारक राइट बंधुओं का वृहद् स्तर पर नागरिक सम्मान आयोजित किया गया। इस अवसर पर आयोजकों ने उन्हें अपना व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। पहले छोटे भाई से बोलने का निवेदन किया गया। उन्होंने आयोजकों और जनता का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं तो सिर्फ़ हवाई जहाज़ बनाना जानता हूँ, बोलना तो मेरे बड़े भाई जानते हैं। यह कह कर लघुभ्राता ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया। जब जेष्ठ राइट बंधु से उनके उद्बोधन के लिए आग्रह किया गया तो बड़े भाई ने कहा कि, ‘‘मेरे छोटे भाई ने इतना अच्छा व्याख्यान दिया है कि मेरे बोलने के लिए अब कुछ बचा ही नहीं है।’’
यह कहानी मुझे उस समय याद आई जब प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति रीवा विश्वविद्यालय में ‘‘समकालीन हिन्दी कहानी दशा और दिशा’’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने बहुत सारे नामवर कहानीकारों और आलोचकों के बीच पधारे। सन् 1997 का वर्ष था। संगोष्ठी में कहानी के महामहोपाध्याय भंते राजेंद्र यादव तथा संजीव, मैत्रैयी पुष्पा, अर्चना वर्मा से लेकर महेश कटारे तक की सघन उपस्थिति दर्ज हुई थी। जब सायंकालीन सत्र में शिवमूर्ति को समकालीन हिंदी कहानी पर बोलने के लिए बुलाया गया तो बहुत ना-नुकुर करते हुए, किसी तरह मंच पर आए। वह सुबह से अनेक कथाकारों, आलोचकों और प्राध्यापकों को कहानी पर बोलते हुए सुन रहे थे। शिवमूर्ति ‘माइक’ पर आकर चुपचाप खड़े हो गए। फिर मेरे, पार्टनर बोलिए, कहने पर मंच को संबोधित कर बोले कि मैं अपने भाषण की जगह एक कहानी सुनाना चाहता हूँ। इसे ही मेरा कथन मान लिया जाए :
‘‘एक राजा थे। उनकी ख्याति थी कि राजा संगीत के अनन्य प्रेमी हैं। राजन प्रतिदिन एक गायक की पक्की गायकी का लुत्फ़ उठाकर ही रात्रि का अन्न-जल ग्रहण करते हैं। रोज़ सायंकाल उनके दरबार में एक गायक बुलाया जाता। एक दिन दरबारियों ने कोई व्यवस्था नहीं की थी। नियत समय पर महाराज पधार गए। सभासदों ने देखा कि राजन की आँखें और कान कलावंत की प्रतीक्षा में अधीर हो रहे हैं। उनके अधिकारी चिंतित होने लगे। काना-फूसी शुरू हुई। किसी को शीघ्र लाओ। महाराज क्रुद्ध न हों। मुँहलगे दरबारियों ने राजमहल के बाहर राजपथ से गुजर रहे एक राही को पकड़ लिया। उसके साथ उसकी बीवी मायके जा रही थी। डर से थर-थर काँपते उस देहाती को बताया गया कि महाराज को गाना सुनाना है। वह हाथ जोड़कर रिरिआने लगा कि, ‘माई-बाप मैंने जीवन में कभी गाना नहीं गाया। मैं राजसभा में