वह सुबह कभी तो आएगी

wo subah kabhi to ayegi

सलमा

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वह सुबह कभी तो आएगी

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    मैं बहुत छोटी थी जब गैस रिसी थी। मेरी अम्मी बताती हैं कि वह मुझे जकड़कर जहाँगीराबाद भागी थी। मेरी याददाश्त में मैंने अपना पहला क़दम बीमारी में ही बढ़ाया था। और अब भी मैं उससे बच नहीं पाई हूँ। बीच में कुछ समय तक कुछ राहत थी पर अब फिर सब कुछ वापस आ गया है। मेरा गला और आँखें सूज जाती हैं, मेरा चेहरा सूजन की वजह से बड़ा रहता है, गले से अंदर-ही-अंदर ख़ून बहता है। मेरी साँसें बुरी तरह से फूलने लगती हैं और मैं होश खो देती हूँ। मेरे पूरे बदन पर लाल-लाल धब्बे हैं। शुरू में ये धब्बे एक-एक रुपए के सिक्के जितने बड़े थे, पर अब तो ये छोटे हो गए हैं। मेरे दाहिने पाँव के कारण मुझे चलने में दिक़्क़त होती है और मेरे पैर देखो—ये छाले पड़े हुए हैं। कितना कुछ हुआ है हमें—हमारी ज़िंदगी गैस के कारण हमेशा के लिए बदल गई है।

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    मेरे अब्बू इस दुर्घटना के कारण ख़त्म हो गए, जब हम बहुत छोटे थे। मेरी माँ की मानसिक हालत बिगड़ गई। वह दरवाज़े पर बैठकर अब्बू का इंतज़ार करती रहती थीं। हमसे कहती कि अब्बू घर आने वाले हैं, उनके लिए चाय बना ले। वह उनके पैरों की आहट सुनतीं और चिल्लाकर कहती कि वे घर आ गए हैं। हम उनसे कहते कि अब्बू मर चुके हैं पर वह हमसे कहतीं कि ऐसी बातें नहीं कहते, और अगर हम फिर ऐसा कहते तो वह हमें मार देती। हम उनसे कहते कि जब हम बड़े हो जाएँगे तो उनकी देखभाल करेंगे। डॉक्टर लोग हमसे कहते कि उन्हें ख़ुश रखा करें पर उनकी हालत देखकर रोए बिना रह पाना मुश्किल होता था। यह सब कुछ महीनों तक चलता रहा। धीरे-धीरे किसी तरह अम्मी ने अपने आप को सँभाला। शायद इस एहसास ने उन्हें ठीक होने में मदद की कि उन्हें ही कुछ उपाय करने होंगे ताकि हम सब ज़िंदा रह सकें।

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    मेरे अब्बू की एक दुकान थी। किसी ने उन्हें समझा-बुझाकर वह दुकान पाँच सौ रुपए में बिकवा दी। जब तक वह पैसा चला, हमें खाने को मिला। फिर मेरी अम्मी कितनी जगहों पर गई, हर जान-पहचानवाले के पास, उधार माँगने! उन्हें दूसरों के लिए काम भी करना पड़ता। तिस पर मेरी सेहत ने मेरी अम्मी से इतना ख़र्च करवाया है। मैं हमेशा से ही बीमार हूँ। मेरी एक जुड़वाँ बहन है जो बिल्कुल ठीक है। मेरी अम्मी चिल्ला पड़ती थी कि वह मेरे इतने बीमार रहने और इतने पैसे ख़र्च करवाने से तंग आ गई हैं।

    एक बार की बात है, जब में बहुत बीमार थी। किसी ने मेरी अम्मी से कहा की मुझे एक प्राइवेट डॉक्टर के पास ले जाएँ। वह डॉक्टर अच्छा माना जाता है। मुझे नर्सिंग होम ले जाया गया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि मैं मरने ही वाली हूँ और मेरे इलाज के लिए सिर्फ़ नर्सिंग होम के बिस्तर का ख़र्चा ही ढाई सौ रुपए हर दिन का आएगा, इलाज का अलग। मेरी माँ ने उन्हें बताया कि हमारे पास इतने पैसे नहीं है। तब उसने कहा कि मुझे घर ले जाएँ। पर वह नहीं मानी। मैं वहीं पड़ी रहती जब तक कि दुपहर को वह न आतीं। मुझे नहीं मालूम कि वह कहाँ से पैसे लाती। पर वह मेरे इलाज के लिए पैसे जुटा ही लेतीं।

    अब मैं आयुर्वेद की दवाएँ लेने लगी हूँ और उससे मुझे काफ़ी आराम है। मेरे पाँव के छाले सूख रहे हैं, पसलियों का दर्द चला गया है, चेहरे की सूजन, सिर दर्द, बदन दर्द और गले से ख़ून बहना बंद हो गया है। अब मुझे पहली बार ऐसा लगने लगा है कि मैं ठीक हो सकती हूँ। मैं यह जानती हूँ कि अभी हमें बहुत दूर जाना है। मैं इतनी ख़ुश रहती हूँ। मैं तो अब जीना चाहती हूँ।

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    स्रोत :
    • पुस्तक : कक्षा-8, दुर्वा (भाग-3) (पृष्ठ 110)
    • रचनाकार : सलमा
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

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