भगत जनों के कारण

bhagat jano.n ke kaara.n

सैन भगत

सैन भगत

भगत जनों के कारण

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    भगत जनों के कारण करी नहीं ठकुराई।

    जाति बरन कुल नहीं जाणे, लोग करे चतराई।

    शबरी जात भीलनी होई, बेर तोड़ने लाई॥

    प्रेम सहित वण का फल खाया, रामचंद्र रघुराई।

    करमा कसो आचरण कयो, मन हरि भक्ति बसाई॥

    छप्पन भोग कर भोजन कर्यो, रुच-रुच खिचड़ी खाई।

    नामा पीपा धन्ना रैदास, दास कबीर गुरुभाई॥

    सब पर एक सरीखी मेहर, महिमा बरनि जाई।

    सैन कहे प्रभु लाज बचावा, खुद बण आया नाई॥

    परमात्मा ने भक्तों पर कभी भी श्रेष्ठता नहीं दिखाई। सदा सहज सामान्य बने रहे। जाति, वर्ण और कुल नहीं माना। सबको अपने निकट मानकर कृपा की। लोग ऐसी चतुराई दिखाते हैं। प्रभु नहीं दिखाते। शबरी भील थी। वन से बेर तोड़ लाई। भगवान राम ने रुचि के साथ खाए। करमा ने ऐसा कौन-सा बड़ा तप किया था? उसने मन में हरि-भक्ति बसा ली थी। प्रभु ने प्रकट होकर उसकी खिचड़ी छप्पन भोग मानकर खाई। नामदेव, पीपा, धन्ना, रैदास और कबीरदास मेरे गुरूभाई हैं। कोई ऊँचे वर्ग का नहीं है। प्रभु ने सब पर समभाव से कृपा की। प्रभु की महिमा अपरंपार है। मेरी लाज बचाने नाई बनकर स्वयं आये। उनकी कृपा का वर्णन संभव नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 302)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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