पंचपंडव चरित रासु (ठवणि ११)

panchpanDaw charit rasu (thawani ११)

शालिभद्र सूरि

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पंचपंडव चरित रासु (ठवणि ११)

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    तांड ऊपाडिउ घालिउ पाइ पूछिउं कुसलु युधिष्टिरि राइ

    भणइ दुरयोधनु “अतिअ सुखीया तुम्ह पाय जउ मइं पणमीया॥५८॥

    घर ऊपरि दुरयोधनु चलइ एतइं जयद्रथ पाछउ वलइ

    निउंन्नीउ कूंती रहिउ सोइ अरजुनि आणी मंत्र रसोइ॥५९॥

    लोचन वंची कूड करेउ चालिउ पापी द्रू पदि लेउ

    अजुनु भीमु भिडया भड बेउ कटकु विणासिउं द्रू पदि लेउ॥६०॥

    पांचे पाटे भद्रिउं (...) भीमि भिडी ऊपाडी रीस

    नवि मारिउ छइ माडी वयणि जिम नवि दीसइ रांडी भयणि॥६१॥

    एतई नारदु रिषि आवेऊ दुर्योधन सुं मंत्रु करेउ

    नगर माहि वज्जाविउ वडहू बोलिउ दूजणु इम पडवडहु॥६२॥

    “पंचह पंडव करइ विणासु तेह तणी हुं पुरु आस”

    पुत्रु पुरोहित नउ इम भणइ ‘‘कृत्या नउ वरु छइ अम्ह तणइ॥६३॥

    कृत्या पासि करावुं कामु वयरी नुं हुं फेडउं ठामु”

    कृत्या आवी घाई ‘सकल कइ मारूं कइ करूं विकल’॥६४॥

    नारदु पहुतउ सिख्या देवि पंडव बइठा ध्यानु धरेवि

    एकं पिं दिणयर द्रेंठि हीयडइ मंत्रु पंच परमेठि॥६५॥

    दिवस सात जां इण परि जाइं तां अच्चभू को रणवाइं

    एतइं आविउं कटकु अपारु पंडव घाया लेई हथीयार॥६६॥

    घोडइ घाली द्रूपदि देवि साटे मारइं कटकु मिलेवि

    अरजुनि जामुं दलु निरदलुं राय तणुं तां सूकउं गलु'॥६७॥

    कृत्रिम सरवरि पाणी पीइ पांचइ पुहवी तलि मूंछीयइं

    सरवर पालिं द्रूपदि मिली एकि पुलिंदइं आणी वली॥६८॥

    कृत्या राखसि तणीय जि सही भीलि बाली ऊभी रही

    मणि माला नुं पाया नीरू पांचइ हूया प्रकटसरीर॥६९॥

    ॥वस्तु॥

    पंच पंडव पंच पंडव चित्ति चितंति

    कुणु नरवरू आवीऊ कुणिं तलावि विसनीरू निम्मिउ

    कुणि द्रूपदि अपहरीय कुणि पुलिदि, इम चित्ति विम्हिउ

    अमरु एकु पयडउं हुउ बोलइ “सांभलि णाह

    माया सवि मइं करी कृत्या राखेवाह''॥७०॥

    एतइं भोजनवेला हुई दूपदि देवि करइ रसवई

    मासखमणपारणइ मुणिंद वेलां पहुतउ बारि नरिंद॥७१॥

    पंचइ पंडव पय पणमंति अतिथिदानु ते मुनिवर दिंत

    वाजी दुं दुहि अनु दुडदुडी अंबर हूती वाचा पडी॥७२॥

    मत्स्यदेसि जाई नइ रमउ तेरमउ वरसु नीगमउ

    ग्या वइराटह राय असथानिं वेस विडंब्या नीय अभिमानि॥७३॥

    कंक भट्टु बल्लवु सुआरू अरजुनु हुउ कीवाचारू

    चउथउ नकुलु असंधउ थाइ सहदे वारइ नरवइ गाइ॥७४॥

    प्रथम पवाडइं कीचक मरइ बीजइ दक्षिणगोग्रहु करइ

    त्रीजउ उत्तरगोग्रहु हूउ पंडवि वरसु इस परि गमिउ॥७५॥

    अभिवनु उत्तरकूंयरि वरिउ आवी कृष्णि वीवाहु सु करिउ

    पहुतउं सहूइ कन्हडपुरि च्यारि कन्न चिहु पंडव वरी॥७६॥

    ॥वस्तु॥

    दूयभाविं दूयभाविं गयउ गोबालु

    “दुजोहण वयणु सुणि एक बारमह भणिउ किज्जईं

    निय अवधि आवीया पंडवाह बहु मानु दिज्जई

    इंदपत्थु तिलपत्थु पुरु वारुणु किसी च्यारि

    हस्तिनागपुरु पांचमु आपीउ मत्सरु वारि”॥७७॥

    भणइ कुरवु भणइ कुरवु “देव गोविंद

    मह महीयलि वणि फिरिया एहु मनु पंडव मानइ

    भुइं लद्धी भूयबलि एक चास हिव पामइं

    इवक महिलीपंच जण तीहं मिलिउं तुं पक्खि

    उअहाणउ सच्चु किउ ‘कूडउ कूडा सक्खि'॥७८॥

    कन्हु बोलइ कन्हु बोलइ ‘‘भीमबलु जोइ

    विसखप्पर कीचका बकु हिडुंबु कमीरु मारिउ

    लहु बंधवि अर्जुनिं दुन्नि वार तुह जीउ ऊगारिउ

    विदुरि कृपागुरि द्रोणि मइं जउ मिलइं राय

    तउ जाणुं नियकुल नुंहिव कउरब नु घरू जाइ”॥७९॥

    पंडु पुच्छीउ पंडु पुच्छीउ विदुरि घरि कन्हु

    रीसारुणु चल्लीयउ मग्गि मिलीउ सहूइ नावइ

    “दुरयोधनु दुट्ठमणु किम इव देव अम्ह सलि आवइ

    कउरववंस बिणासिवा कांई कूडु मांडि॥८०॥

    मानु दिन्हउं मानु दिन्हउं कन्ह गंगेय

    एकंतु करि अखीउ कन्न गुझु कुंती पयासीउ

    “ईह सत्थि काइं तु मिलिउ जोइ जोइ तुं मनि विमासीउ''

    करणु भणइ “सच्चु कहउं पुणू छह एकु वि नाणू

    दुरयोधन रहिं आपणा मइ कल्पा छइं प्राण''॥८१॥

    भणइ कन्हडु भणडु कन्हडु “कन्न जाणेजि

    नवि मानिउं तुम्हि हुं एह वात अति हुई विरूई

    अम मुझ धरि अविया पंडुपुत्र इह वात गरूई

    दुरयोधनि हुं पंडवह छठज कीधउ तोइ

    रथु खेडिसु अरजुन तणउ जं भावइ तं होउ”॥८२॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 114)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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