बुद्धि रास (ठवणि ३)

buddhi ras (thawani ३)

शालिभद्र सूरि

शालिभद्र सूरि

बुद्धि रास (ठवणि ३)

शालिभद्र सूरि

और अधिकशालिभद्र सूरि

    हिव श्रावकना नंदनह, बोलसु केई बोल।

    अवघड मारगि हीडंतां ए, विणसई धरम नीटोल।।

    तिण पुरि निवसे जिण हवए, देवालउ पोसाल।

    भूष्यां त्रिस्यां गोरूयहं, छोरू करि संभाल।।

    तिण्हिवार जिण पूज करे, सामायक बे वार।

    माय बाप गुरु भक्ति करे, जाणी धरम विचारु।।

    कमरबंध हुई जिणि वयणि, ते तउं बोलि बोलि।

    अविके ऊणे मापुले, कुडउं किमइ तोलि।।

    अधिक लेसि मापुलइं, उच्छं किमइ देसि।

    एकह जीहव कारणिहि, केतां पाप करेसि।।

    जिणवर पूठिइं वससे, मराखे सिवनी द्रे ठि।

    राउलि आगलि वससे, बहुअ पाडेसिइं बेठि।।

    राषे धरि बि बारणां ए, ऊधत राषे नारि।

    ईंधणि कातणि जलबहणि, होइ सछंदाचारि।।

    पटकसाल पांचइ तणीय, जयणा भली करावि।

    आठमि चउदसि पूनीमिहि, धोयणि गारि वरावि।।

    [अणगल जल वावरू ए, जोउ तेहनउ व्याप।

    आहेडी मांछी तणू ए, एक चलुं ते पाप।।

    लोह मीण लष धाहडी य, गली चरम विचारि।

    एह सविनूं विवहरण, निश्चउ करीय निवारि।।

    सुइमुहि जेत चांपीइ ए, जीव अनंता जाणि।

    कंद्र मूल सवि परहरु ए, धरम करइ हाणि।।

    रयणी भोजन करिसि, बहुय जीव सिंहार।

    सो नर निश्चइ नरयफल, होसिइ पाप प्रमाणि।।]

    जांत्र जोत्र ऊषल मुशल, अपि हल हथीयार।

    सइ हथि आगि आपीइ ए, नाच गीत घरवारि।।

    पाटा पेढी करसे, करसण नइ अधिकारि।

    न्याइं रीतिइं विवहरु ए, श्रावक एह आचार।।

    वाच घालिसि कुपुरसह, फूटइ मुहि महसेसि।

    बहुरि आस पिराइंह, बहु ऊधारि देसि।।

    बइद विलासणि दुइडीय, सुइआणीसु संगु।

    राषे बहिनर बेटडी य, जिम हुइ शील भंगु।।

    गुरु उपदेसिइ अति घणा ए, कहूं तु लहुं पार।

    एह बोल हीयडइ धरीउ, सकल करे संसार।।

    ‘सालिभद्रगुरु' संकुलीय, सिविहूं गुर उपदेसि।

    पढ़इ गुणइ जे संभलहिं, ताहइ विघ्न टलेसि।।

    ।।इति बुद्धिरास समाप्त मिति।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 34)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए