अरुंधती रॉय के उद्धरण

यह दिलचस्प है कि कैसे मृत्यु की स्मृति कभी-कभी उस जीवन की स्मृति की तुलना में कहीं देर तक ज़िंदा रहती है, जिसे उसने हस्तगत कर लिया होता है।
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