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वेदव्यास के उद्धरण

यज्ञ में अर्पण ब्रह्म है, हवि ब्रह्म है, ब्रह्म रूप अग्नि में ब्रह्म ने हवन किया है, इस प्रकार जिसकी बुद्धि से सभी क्रम ब्रह्म रूप हुए हैं, वह ब्रह्म को ही प्राप्त करता है।