वेदव्यास के उद्धरण

तात! सभी कर्मों के फल में सदा अनिश्चितता रहती है। इस अनिश्चितता को जानते हुए भी बुद्धिमान पुरुष कर्म करते हैं और वे कभी सफल होते हैं और कभी असफल। परंतु कर्मों का आरंभ नहीं करते, वे कभी भी अपने इष्ट की सिद्धि में सफल नहीं होते। कर्मों को छोड़कर निश्चेष्ट हो जाने का एक ही फल होता है—कभी भी अभीष्ट मनोरथ की प्राप्ति न होना। लेकिन कर्मों में लगे रहने से दोनों प्रकार का परिणाम संभव है—वांछनीय फल की प्राप्ति हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती।
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