शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उद्धरण

शरद् ऋतु के बादल में न बिजली है, न पानी है। उड़ता-उड़ता फिरता है, कोई भी बात चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उसे वह हँस-खेल के ही उड़ा देता है। न तो बिसारी है, न वैरागी।
-
संबंधित विषय : बादल