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शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उद्धरण

शरद् ऋतु के बादल में न बिजली है, न पानी है। उड़ता-उड़ता फिरता है, कोई भी बात चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उसे वह हँस-खेल के ही उड़ा देता है। न तो बिसारी है, न वैरागी।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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