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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

साहित्य की माँ जिस तरह रोती है, प्रकृत माँ उस तरह नहीं रोती। इसका मतलब यह नहीं है कि साहित्य की माँ का रोना झूठा है।

अनुवाद : अमृत राय