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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

साहित्य अपनी चेष्टा को सफल करने के लिए अलंकार, रूपक, छंद, आभास, इंगित का सहारा लेता है। दर्शन विज्ञान के समान निरलंकार होने से उसका काम नहीं चलता।

अनुवाद : अमृत राय