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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

सभ्यता एक प्रकार का साँचा है, जो प्रत्येक जाति अपने सर्वश्रेष्ठ आदर्श के अनुसार निर्माण करती है, जिसमें उसके सभी स्त्री व पुरुषों के जीवन की रूपरेखा तैयार होती है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार