शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उद्धरण

प्रथा जब एक बार धर्म का रूप धारण करके खड़ी हो जाती है, फिर कोई भी निष्ठुरता असाध्य नहीं रह जाती, बल्कि कार्य जितना भी अधिक निष्ठुर होता है और जितना ही अधिक बीभत्स होता है, पुण्य का वज़न भी उतना ही बढ़ जाता है।
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