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रघुवीर चौधरी के उद्धरण

न बोलने से भी राहत मिलती है और मौन से भी बचा सकता है। बेशक, चेहरे की रेखाओं में इसे न दिखने देकर ख़ामोशी को पूरी तरह ख़ामोश नहीं रखा जा सकता।

अनुवाद : भाग्यश्री वाघेला