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रेनर मरिया रिल्के के उद्धरण

मुझे लगता है शरद के सिवा ऐसा कोई समय नहीं जब हमारी साँस में मिट्टी की बस एक गन्ध महसूस होती है-पकी हुई मिट्टी की। यह गन्ध समुद्र की गन्ध से कमतर नहीं है। समुद्र की लहरें जब दूर रहती हैं, तब उसकी गन्ध में एक कड़वापन रहता है, लेकिन जब वह एक स्वर के साथ पृथ्वी तट को छूती है तो उसमें मीठापन आ जाता है। यह अपने भीतर एक गहराई को समेटे होती है|

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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