केदारनाथ सिंह के उद्धरण

मुझे ग़लत भाषा बहुत आकृष्ट करती है। अजब बात है, क्योंकि जीवंतता उसी में होती है और लगातार चुनौती के रूप में वहाँ रहती है। और मैं इधर मानने लगा हूँ कि जो भाषा ग़लत लिखने और बोलने की जितनी छूट देती है अपने समाज में, वह उतनी ही ज़िंदा रहती है।
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