मुझे बिल्कुल साफ़ दिखाई देता है कि तुम्हें मेरे और मेरे विचारों के विरुद्ध खुली लड़ाई करनी चाहिए। कारण, यदि मैं ग़लती पर हूँ तो मैं स्पष्ट ही देश की वह हानि कर रहा हूँ, जिसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती और उसे जान लेने के बाद तुम्हारा धर्म है कि मेरे ख़िलाफ़ बग़ावत में उठ खड़े हो, अथवा यदि तुम्हें अपने निर्णयों के ठीक होने में कोई शंका है तो मैं ख़ुशी से तुम्हारे साथ निजी रूप में उनकी चर्चा करने को तैयार हूँ। तुम्हारे और मेरे बीच मतभेद इतने विशाल और मौलिक हैं कि हमारे लिए कोई मिलन की जगह दिखाई नहीं देती। कार्य की सिद्धि के लिए साथीपन को क़ुर्बान करना पड़ता है।