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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

कालिदास कहाँ थमे हैं एवं कहाँ नहीं थमे—वही आज के आदर्श के साथ तुलना कर विचार करने का विषय है। पथ के किसी एक स्थान पर ठहरकर उन पर विचार नहीं किया जा सकता, देखना होगा उनका गम्यस्थान कहाँ है।

अनुवाद : चंद्रकिरण राठी