कई बार तो जाति से निकाला जाना स्वागत करने की चीज होती है। जिस जाति के पंच अन्याय करके अपना बड़प्पन खो बैठते हैं, उस जाति में रहना तो अनीतिमय राज्य में रहने के बराबर है। इससे पहले कि जाति उसका बहिष्कार करे, व्यक्ति को स्वयं जाति से अपना संबंध तोड़ लेना चाहिए, और उपजातियों को तो हर हालत में समाप्त कर देना ही इष्ट है।