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चाणक्य के उद्धरण

जिस प्रकार जीभ पर रखे हुए मधु या विष के संबंध में कोई यह चाहे कि मैं इसका स्वाद न लूँ, यह संभव नहीं है। उसी प्रकार राजा के अर्थ-संबंधी कार्यों पर नियुक्त कर्मचारी उस अर्थ का थोड़ा भी स्वाद न लें, यह संभव नहीं है।